Friday 2 September 2016



प्रिय छात्रों आप सभी ने बचपन में वरदराज की कहानी तो सुनी ही होगी, हाँ वहीँ वरदराज जो पढ़ने-लिखने में बहुत ही नालायक था परन्तु कुएँ की रस्सी से पत्थर पर पड़े निशान को देख कर, उस रस्सी से प्रेरित होता है जो कि अपने से कई गुना कठोर पत्थर को भी बार-बार घिस कर काट देती है और आपको जान कर आश्चर्य होगा की यही वरदराज आगे चल कर संस्कृत का महा पंडित पाणिनी बनता है वही जिसने संस्कृत व्याकरण के सूत्र इस विश्व भर को दिए|

इसके पीछे की मूल धारणा यह है की व्यक्ति यदि अभ्यास करे तो सब कुछ हासिल कर सकता है, किसी भी परीक्षा के लिए आप कितनी भी किताबें पढ़ लें, खूब बड़े-बड़े संस्थानों से कोचिंग कर लीजिए, कितने भी बड़े अध्यापक से पढ़ लीजिए परन्तु जब तक आप उस परीक्षा के लिए अभ्यास नही करेगें तब तक आप सफलता से वंचित ही रहेगें, सफलता पाने का एकमात्र सूत्र है- ‘अभ्यास’ 
आप जितना अभ्यास करेगें सफलता के उतना ही करीब मिलेंगे । 

अभ्यास के बाद यदि कोई चीज आती है तो वो है ‘संतोष', मनुष्य का यह सात्विक सत्य है की जितना खुश वह किसी उपलब्धि पर नही होता उससे कई गुना निराश वह किसी बात के मन मुताबिक न होने पर होता है, याद रखिये सफल वही व्यक्ति होता है जिसमे सयंम होता है जो विपरीत पारिस्थितियों में अपने आप को प्रेरित करता है और अपने आप और अपने मन से कह सके की YES I CAN, ये एक पंक्ति आपको बड़ी से बड़ी मुश्किल का समाना करने के लिए प्रेरित करेगी और असल में वही व्यक्ति सफल होता है जब उसे अपने काम और अपने आप से संतोष होने लगे । 
इसलिए सफल होने के लिए आपके भीतर अभ्यास करने की चाह हो और साथ ही उस अभ्यास को सयंम के साथ निभाने की इच्छा ।

परीक्षाओं के लिए आप सभी को शुभकामनाएं !!!!

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