Monday, 3 October 2016

कावेरी जल विवाद


जल ही जीवन है और जल के बिना कोई जीवीत नहीं रह सकता लेकिन फिर भी पानी की बर्बादी पूरे विश्व के लिए चर्चा का विषय बनी हुई है।जैसा की यह स्वर्ग से बरसता है तो इसलिए जल हमेशा से भगवानों से एक उपहार के रूप में मन जाता है

केवल एक ही जीव है जो पानी की अहमियत नहीं समझता और वो है मानव, खासतौर पर औद्योगिक देशों में, पानी की बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन अभी भी हम उस अनमोल चीज की अहमियत नहीं समझ रहें हैं जो हमारे पास आज तो लेकिन शायद् कल ना हो।

हाल ही में पानी के लिए तमिलनाडु और कर्णाटक के मध्य लड़ाई देखी जा चुकी है। ये राज्य आज भी कावेरी के जल के लिए लड़ते हैं। कावेरी नदी इन दो राज्यों के लिए महत्वपूर्ण पानी के श्रोतों में से एक है और यह दो राज्य पानी के विभाजन को लेकर हमेशा नजर में रहेंगे कावेरी नदी का उद्गम तालकावेरी, कर्नाटक में कोडगु पर है, और यह आमतौर पर दक्षिण और पूर्व के माध्यम से कर्नाटक और तमिलनाडु  से बहती है।

☛  कावेरी नदी विवाद का इतिहास:
कावेरी नदी के जल का बंटवारा दो भारतीय राज्यों तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच एक गंभीर संघर्ष का स्रोत रहा है।यह जल विवाद ब्रिटिश काल से चला आ रहा है। उन्नीसवी शताब्दी के अंत में मैसूर सरकार नए क्षेत्रों के लाभ के लिए अपने पुराने सिचाई कार्यक्षेत्र में सुधार करना चाहती थी और नए सिचाई क्षेत्रों का निर्माण करना चाहती थी।यह निर्माण उनके राज्य से होकर गुजरने वाली नदी व धाराओं पर किया जाना था। यह आशंका करते हुए की मैसूर सरकार द्वारा ऐसा निर्माण मद्रास में पानी के प्रवाह को बंद कर देगा, मद्रास की सरकार ने भारत सरकार से साथ इस मामले को उठाया।तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर के सामंती राज्य के बीच 1892 और 1924 में पानी में बटवारे के विवाद को सुलझाने के लिए दो समझौते किये गए। 

भारत की आजादी के बाद, अंतर-राज्यीय नदी कावेरी के बारे में जल विवाद पर निर्णय करने के लिए कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण(CWDT) को 2 जून 1990 को भारत सरकार द्वारा गठित किया गया था। अधिकरण ने जून, 1991 को एक अंतरिम आदेश भी पारित किया था और आगे अप्रैल, 1992 और दिसंबर, 1995 एक अंतरिम आदेश पर स्पष्टीकरण आदेश पारित किया था।कावेरी बेसिन में पानी के उपयोग का स्तर देश में सभी नदियों के बीच सबसे अधिक है। अधिक से अधिक 90प्रतिशत बेसिनों का 1990से पूर्व शोषण कर लिया गया है। उसके बाद पानी की उपलब्धता सीमित थी, उपयोगकर्ता अधिक थे, कृषि गतिविधियाँ बढ़ गई थीं और इसके कारण बेसिन सिकुड़ता चला गया।

☛  वर्तमान परिदृश्य:

हाल ही में कर्णाटक में किसानो के आंदोलन को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटका को पड़ोसी राज्य तमिलनाडु को 10 दिन के लिए कावेरी नदी के पानी का 15,000 क्यूसेक देने का आदेश दिया है।वर्ष 2016 में कर्नाटका और तमिलनाडु में मानसून से समय आम वर्षा से कम वर्षा हुई है। कर्नाटका ने कहा है की वह कृषि के उद्देश्य के लिए तमिलनाडु को पानी नहीं देगा यह पानी पीने के लिए है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने दिल्ली में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कहा है कि केंद्र "कुछ नहीं कर सका" कावेरी विवाद के रूप में न्यायाधीन माना गया था।कर्नाटक राज्य सरकार ने दोनों सदनों के एक दिवसीय सत्र द्वारा निर्णय नहीं लिया जा सकता टैब तक अपने कावेरी नदी के पानी को छोड़ने के निर्णय को टाल दिया है।


पानी एक श्रोत है, हमें इसे भी ऐसे ही बचाना चाहिए जैसे हम अन्य श्रोतो को बचाते हैं। कोई भी पानी के बिना अपना जीवन नहीं सोच सकता आज हम दुनिया के आधुनिकीकरण के सतत विकास के बारे में बात करते हैं, लेकिन पानी के बिना हम जीवित नहीं रह सकते। मनुष्यों को भविष्य के लिए पानी के बचाव एक बारे में सोचन सीखना चाहिए

शुभकामनाएं

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