Wednesday, 23 December 2015

गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) के लिए होंगे दो कार्यक्षेत्र

जीएसटी के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम्स (सीबीईसी) दो वर्टिकल बना रहा है, जिस पर पॉलिसी इश्यूज और जीएसटी को लागू करने की जिम्मेदारी होगी।
विपक्ष ने गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) बिल को भले ही रोक दिया है, लेकिन सरकार ने इसे लागू करने के लिए प्रशासनिक तैयारियां शुरू कर दी हैं। इससे यह मेसेज जाता है कि केंद्र जीएसटी को तय समय सीमा पर लागू करने का इरादा रखता है।



कौन से हैं ये दो वर्टिकल
सीबीईसी जो दो वर्टिकल बना रहा है, उसमें से एक परफॉर्मेंस मैनेजमेंट तो दूसरा टैक्सपेयर सर्विसेज का काम देखेगा। ये वर्टिकल इसलिए बनाए जा रहे हैं ताकि नए टैक्स सिस्टम के तहत पॉलिसी बनाने और उसे लागू करने का काम तेजी से हो सके। नए टैक्स सिस्टम की जरूरत के मुताबिक दोनों ही वर्टिकल नियम और प्रक्रिया तय करेंगे। दरअसल, सरकार देश में बिजनेस करने को आसान बनाने पर भी काम कर रही है। दोनों वर्टिकल से इस मकसद को हासिल करने में मदद मिलेगी।
सीबीईसी के मेंबर वी एस कृष्णन ने बताया, 'हम तेजी से काम कर रहे हैं। कानून और प्रक्रियाओं पर हमारे और राज्यों के अधिकारी के तहत बने सब-ग्रुप काम कर रहे हैं। डायरेक्टरेट ऑफ सर्विस टैक्स के बदले डायरेक्टरेट ऑफ जीएसटी बनाया जाएगा और इसके दो वर्टिकल होंगे।'  राज्य और केंद्र सरकार के स्तर पर लगाई जाने वाली अप्रत्यक्ष दरों की जगह जीएसटी लेगा। इसे 1 अप्रैल 2016 से लागू करने की योजना है।
सेंट्रल एक्साइज, सर्विस टैक्स, स्टेट वैल्यू ऐडेड टैक्स, एंटरटेनमेंट टैक्स, ऑक्ट्रॉय, लग्जरी टैक्स और परचेज टैक्स की जगह सिंगल रेट जीएसटी लेगा। एक्सपर्ट्स का दावा है कि जीएसटी के लागू होने से देश की इकनॉमिक ग्रोथ 2 पर्सेंट तक बढ़ सकती है।

जीएसटी बिल को लोकसभा ने पास कर दिया है, लेकिन हाल में खत्म हुए मॉनसून सत्र में राज्यसभा में यह पेश नहीं हो पाया क्योंकि विपक्ष ने इस दौरान संसद नहीं चलने दी। राज्यसभा में सत्ताधारी नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) अल्पमत में है।
प्रभाव
जीएसटी लागू होने से पूरा देश सिंगल मार्केट बन जाएगा। इसका मतलब यह है कि कुछ प्रॉडक्ट्स को छोड़कर सभी राज्यों में हर सामान पर एक बराबर टैक्स लगेगा। इसके साथ अप्रत्यक्ष कर की प्रक्रिया और नियम भी एक जैसे होंगे। केंद्र और राज्य स्तर पर रजिस्ट्रेशन, रिटर्न फाइलिंग, टैक्स पेमेंट और ऑडिट का एक जैसा सिस्टम होगा। इस टैक्स सिस्टम के तहत डायरेक्टरेट ऑफ जीएसटी को थर्ड पार्टी ऑडिट कराने का अधिकार होगा। क्या जीएसटी से सभी पक्ष खुश हैं, इसका पता लगाने के लिए वह स्टडीज भी कराएगा। अगर इसमें कमियों का पता चलता है तो वह उसे दूर करने के लिए कदम उठाएगा।

आप चाहे उत्पादक हों, सप्लायर हों, विक्रेता हों या उपभोक्ता हों हर चरण पर आपको सामान बनाने से लेकर बेचने और खरीदने तक टैक्स देना पड़ता है। इसे एक और बार यूं समझिये कि जब कच्चा माल किसी फैक्ट्री में आता है तब आने से पहले भी वो कहीं न कहीं टैक्स देकर आता है, फैक्ट्री से बनकर निकलता है तो उस पर टैक्स लग चुका होता है, उसके बाद जब दूसरे राज्य की दुकान पर ले जाया जाता है तो रास्ते में कई प्रकार की चुंगी लगती है, फिर दुकान पर पहुंच कर जब आप खरीदते हैं तो वैट नाम का टैक्स देते हैं। इन सबको हम इनडायरेक्ट टैक्स यानी अप्रत्यक्ष कर कहते हैं।

अब कहा जा रहा है कि फलाना ढिमकाना टैक्स हटाकर एक टैक्स लगेगा, जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स। वित्त मंत्री ने इस टैक्स के बारे में कहा है कि जिस तरह से देश का राजनीतिक एकीकरण 1947 में हुआ उसी तरह से आर्थिक एकीकरण नहीं हो सका। जीएसटी आने से अप्रत्यक्ष कर प्रणाली एक समान हो जाएगी। टैक्स की उगाही बढ़ेगी और जीडीपी को भी लाभ होगा।

जीएसटी के बारे में....
संविधान संशोधन बिल होने के कारण जीएसटी को राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत से पास होना है। फिर उसके बाद आधे राज्य भी दो तिहाई बहुमत से पास करेंगे तब जाकर जीएसटी लागू होगा। सरकार का लक्ष्य है कि 2016 में लागू कर दिया जाए लेकिन इस लक्ष्य के कुछ दूसरे मुकाम और भी हैं। जीएसटी को ऑपरेशन यानी अमल में लाने के लिए...
- एक जीएसटी काउंसिल बनेगी, जिसके मुखिया केंद्रीय वित्त मंत्री होंगे।
- सदस्यों में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री, राज्यों के वित्त मंत्री होंगे।
- काउंसिल में कोई भी फैसला तीन चौथाई मतों से होगा।
- जीएसटी काउंसिल ही तय करेगी कि जीएसटी टैक्स रेट क्या होगा।

एक्साइज ड्यूटी, कस्टम्स ड्यूटी, सेल्स टैक्स, कई प्रकार के सेल्स, सर्विस टैक्स, ऑक्टरॉय यानी चुंगी, नाना प्रकार के अप्रत्यक्ष कर आपने सुने ही होंगे। इन करों के माध्यम से केंद्र सरकार और हर राज्य की सरकार अपनी कमाई करती है। जैसे हाल में ही दिल्ली सहित कई राज्यों ने मिलकर पेट्रोल पर एक्साइज़ ड्यूटी बढ़ा दी। दाम बढ़ गए। जैसे एक बार किसी राज्य ने एक्साइज़ ड्यूटी कम कर पेट्रोल की कीमतों में राहत दी थी। मुझे नहीं मालूम कि जीएसटी के बाद राज्य इस तरह से टैक्स घटा बढ़ा सकेंगे या नहीं। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की साइट पर जीएसटी को थोड़ा सरल तरीके से समझाया गया है|
- दावा किया जा रहा है कि अब नाना प्रकार के टैक्स की जगह एक टैक्स लगेगा।
- लेकिन इस एक टैक्स के भी तीन प्रकार बताये जा रहे हैं।
- सेंटर जीएसटी, स्टेट जीएसटी और इंटर स्टेट जीएसटी।

कच्चा तेल, हाई स्पीड डीज़ल, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस, अल्कोहल, सिगरेट को जीएसटी की सूची से बाहर रखा गया है। यह समझना ज़रूरी है कि जीएसटी वहां नहीं लगेगा जहां कोई चीज़ बनती है बल्कि सीधे वहीं लगेगी जहां वो बिकती है। इसलिए कई राज्यों को भय है कि जीएसटी के आने से उनका राजस्व कम हो जाएगा क्योंकि जिन राज्यों में वस्तु का उत्पादन होता है वहां टैक्स नहीं लगेगा, इससे उनकी कमाई कम हो जाएगी। केंद्र सरकार ने इसकी भरपाई का वादा किया है और एक प्रतिशत का अतिरिक्त टैक्स लगाने की बात की है।
चर्चा
वैट लागू होने के वक्त भी यही सब दावे हुए थे लेकिन उसके बाद एक और टैक्स आ गया सर्विस टैक्स। अब एक और टैक्स आ रहा है जीएसटी। 12 साल से हम इस पर चर्चा कर रहे हैं।
- 2003 में वाजपेयी काल में केलकर कमेटी ने जीएसटी की चर्चा शुरू की थी।
- आज वित्त मंत्री ने कहा कि 2006 में कांग्रेस ने इसकी घोषणा की थी।
- लेकिन 2011 में संविधान संशोधन लाने के बाद भी राजनीतिक दलों और राज्यों में सहमति नहीं बन सकी।
- 15वीं लोकसभा में यह बिल लैप्स कर गया, दिसंबर 2014 में मोदी सरकार ने लोकसभा में इसे दोबारा पेश किया।

- और मई 2015 में ये लोकसभा में पास हुआ।

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