संसद के कार्य
संसद संघ और समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर कानून बनती है l वह निम्न परिस्थतियों में राज्य सूची पर भी कानून बना सकती है, यदि
यदि सभा इस आशय का प्रस्ताव पारित करे की ऐसा करना राष्ट्रीय हित में है और/या
दो या दो से अधिक राज्य विधायिका इस आशय की संस्तुति संसद से करें
अवशिष्ट सूची में शामिल विषयों पर कानून बनाने का अधिकार संसद को है l
संसद (लोक सभा के माध्यम से) केंद्रीय वित्त पर नियंत्रण रखता है l
संसद (लोक सभा के माध्यम से) कार्यपालिका के कामकाज पर नियंत्रण रखता है l
संविधान में संशोधन संसद के द्वारा ही किया जा सकता है l
संसद को उप-राष्ट्रपति को चुनती और उसके महाभियोग द्वारा उसे पदमुक्त भी कर सकती है l
यह अखिल भारतीय सेवाओं की सृजन संस्तुति, उच्चतम न्यायालय और उच्च
न्यायालयों के न्यायाधीशों को उचित प्रक्रिया के द्वारा हटा सकती है l
संसदीय अनुमोदन राष्ट्रपति द्वारा लगाये गए आपात की उद्घोषणा की जारी रखने को मंजूरी देती है।
संसद में विधायी प्रक्रियाओं
साधारण विधेयक : वित्त विधेयक के आलावा अन्य सभी विषय से सम्बंधित विध्येकों को साधारण विधयेक कहते हैं l
प्रथम वाचन : साधारण विधयेक किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता
है l जब कोई सदस्य किसी विधयेक को सदन में प्रस्तुत करना चाहता है तो पहले
सदन को इसकी अग्रिम सूचना देनी होती है l जब सदन इस विधयेक को प्रस्तुत
करने की अनुमति दे देता है तो प्रस्तुत करता इस विधयेक का शीर्षक और
उद्देश्य बताता है l इस चरण में विधयेक पर किसी भी प्रकार की चर्चा नहीं
होती l बाद में इस विधयेक को भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है l
द्वितीय वाचन : विधयेक के साधारण सिद्धांतो पर चर्चा की जाती है, और
विधयेक को उपयुक्त समिति के पास भेज दिया जाता है l इस चरण में किसी भी
प्रकार का कोई संसोधन नहीं किया जाता है l
समिति की अवस्था : उपयुक्त समिति विधयेक की समीक्षा करती है और संसोधन का सुझाव देती है l
विचार-विमर्श की अवस्था : समिति अपनी रिपोर्ट सदन को देती है, जहाँ इस पर
चर्चा होती है l संसोधन प्रस्तावित किया जाता है, खंड-दर-खंड आधार पर चर्चा
होती है l
तृतीय वाचन : इस चरण में विधयेक को स्वीकार या अस्वीकार करने के
सम्बन्ध में चर्चा होती है l विधयेक में कोई संसोधन नहीं किया जाता l यदि
सदन बहुमत से इसे पारित कर देता है तो विधयेक पारित हो जाता है
धन विधयेक : संविधान के अनुच्छेद 110 मे वर्णित एक या अधिक मामलों
से जुड़ा धन विधेयक कहलाता है l ये मामले हैं -किसी कर को लगाना,हटाना,
नियमन, धन उधार लेना या कोई वित्तीय जिम्मेदारी जो भारत की संचित निधि से
धन की निकासी/जमा करना, संचित निधि से धन का विनियोग, ऐसे व्यय जिन्हें
भारत की संचित निधि पर भारित घोषित करना हो, संचित निधि से धन निकालने की
स्वीकृति लेना वगैरह l
कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर लोक सभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम
होगा. धन विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तावित किए जा सकते हैं l इन्हें पास
करने के लिए सदन का सामान्य बहुमत आवश्यक होता है l जब कोई धन बिल लोकसभा
पारित करती है तो स्पीकर के प्रमाणन के साथ यह बिल राज्यसभा मे ले जाया
जाता है राज्यसभा इस बिल को पारित कर सकती है या 14 दिन के भीतर अपनी
सिफारिशों के साथ लोक सभा को लौटा देगी l उस के बाद लोकसभा इन सिफारिशों को
मान भी सकती है और अस्वीकार भी कर सकती है l धन विधयेक को सर्वप्रथम लोक
सभा में ही रखा जाता है l
महत्वपूर्ण संसदीय कार्यवाही
नियमापत्ति (Point of Order)
किसी सभा-समिति में बने हुए नियमों या विधानों अथवा परंपराओं या रूढ़ियों
के विरुद्ध कोई आचरण, कार्य या व्यवहार होने पर उसके संबंध में की जानेवाली
आपत्ति जिसके संबंध में अंतिम निर्णय करने का अधिकार सभापति को होता है l
लेखानुदान
लेखानुदान मांगें (demand for grant) व विनियोग विधयेक सरकार की बजटीय
कार्रवाई का एक हिस्सां है l दरअसल सरकार का बजट अप्रैल से मार्च तक के
लिए होता है l आमतौर पर फरवरी के अंतिम या मार्च के पहले पखवाड़े में संसद
के बजट सत्र में अगले वित्त वर्ष का आम बजट पेश किया जाता है l
कायदे से इस बजट को तीस मार्च तक पारित हो जाना चाहिए ताकि सरकार को अगले
वित्त वर्ष के खर्च की अनुमति मिल सके l लेकिन ऐसा होता नहीं क्योंेकि
बजट पेश होने के बाद विभिन्नव स्था ई समितियां गृह, रक्षा, कृषि जैसे
महत्वलपूर्ण मंत्रालयों के लिए बजटीय प्रस्ताववों पर चर्चा करती हैं. इसलिए
बजट सत्र के बीच में अवकाश होता है और बजट अप्रैल या मई में जाकर पारित
होता है l
लेकिन सरकार इस दौरान कुछ महीने (आमतौर पर तीन माह..अप्रैल,मई, जून) के
खर्च की अनुमति संसद से लेखानुदान मांग के रूप में लेती है. इसके लिए जो
विधेयक संसद में पेश किया जाता है, उसे तत्संरबंधी विनियोग विधेयक
(Appropriation Bill) कहते हैं l लेखानुदान मांगें भी संसद के दोनों सदनों
में पारित होनी होती हैं.
गिलोटिन
किसी भी विषय पर चर्चा के लिए सदन में सीमित समय होता है। अलग-अलग
मंत्रालयों की सभी अनुदान की मांगे सदन में चर्चा के बाद ही पारित होती
हैं। लेकिन जब समयाभाव के कारण लोकसभा अध्यक्ष सभी मंत्रालयों की मांगों को
एक साथ सदन में मतदान के लिए रखते हैं तो उसे गिलोटिन कहा जाता है।
गिलोटिन होने के बाद सभी मांगे पारित हो जाती हैं, भले ही उन पर अलग-अलग
चर्चा हुई हो या नहीं।
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